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मन्त्र (मण्डल
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सूक्त
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ऋक्)
ष॒ट्त्रिं॒शाँश्च॑ च॒तुरः॑ क॒ल्पय॑न्त॒श्छन्दां॑सि च॒ दध॑त आद्वाद॒शम् ।य॒ज्ञं वि॒माय॑ क॒वयो॑ मनी॒ष ऋ॑क्सा॒माभ्यां॒ प्र रथं॑ वर्तयन्ति ॥ (१०.११४.६)
षड्भा॒राँ एको॒ अच॑रन्बिभर्त्यृ॒तं वर्षि॑ष्ठ॒मुप॒ गाव॒ आगु॑ः ।ति॒स्रो म॒हीरुप॑रास्तस्थु॒रत्या॒ गुहा॒ द्वे निहि॑ते॒ दर्श्येका॑ ॥ (३.५६.२)
षळश्वाँ॑ आतिथि॒ग्व इ॑न्द्रो॒ते व॒धूम॑तः ।सचा॑ पू॒तक्र॑तौ सनम् ॥ (८.६८.१७)
ष॒ष्टिं स॒हस्राश्व्य॑स्या॒युता॑सन॒मुष्ट्रा॑नां विंश॒तिं श॒ता ।दश॒ श्यावी॑नां श॒ता दश॒ त्र्य॑रुषीणां॒ दश॒ गवां॑ स॒हस्रा॑ ॥ (८.४६.२२)